आज भी मेरे अंदर मै बहोत बाकी हुँ!
मै अकेला ही दुनियाँ बदलने काफी हुँ!
खैरीयत मे मुझे नही चाहीऐ रीयासत सियासत!
पत्थरों से टकराने के लिए मै अकेला काफी हुँ!
अब मुझे रोकने सिने से लगाने काफीला आ रहाँ है!
कारवाँ बनाने के लिऐ दिलों मे बसने के लिऐ काफी हुँ!
वो चाहते है कि नफरतों दौर मे मै मुहब्बत कलमा पढुँ!
वतन के अमन सुकुन के लिऐ मरने के लिऐ काफी हुँ!
जिगर मे उजाले लिऐ मै दुनियाँ घुमता हुँ, झुमता हुँ!
सुरजको कोई जाके कहेदे मै अंधेरा मिटाने काफी हुँ!